इंडिया ने इराक से तेल खरीदा, टकराव में अमेरिका को दी नई वैकल्पिक योजना

जब India ने इराक से तेल खरीदना शुरू किया, तो यह सिर्फ एक वाणिज्यिक सौदा नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा‑राजनीति का नया मोड़ बन गया। नई दिल्ली ने अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump को एक प्रपोज़ल भेजा – इराक और वेनेजुएला से तेल खरीदेँ, ताकि रूसी कच्चे तेल पर निर्भरता घटाई जा सके। इस कदम ने "स्नैपबैक" प्रतिबंधों के बीच ऊर्जा सुरक्षा को दो‑सिरे वाला सवाल बना दिया।

पृष्ठभूमि: 2018‑2025 की ऊर्जा‑संधि

2018 में, जब Washington ने जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान (JCPOA) से पीछे हटते हुए इराकी तेल पर आधिकारिक प्रतिबंध लगा दिए, तब India ने इराकी कच्चे तेल का आयात बंद कर दिया। तब से 2020‑2022 के बीच, भारत ने मुख्यतः रूसी सस्ते तेल पर भरोसा किया, जिससे उसकी आयात बिल में 15‑20 % की कमी आई।

2024 में, यू.एस. ने "स्नैपबैक" तंत्र को सक्रिय किया – यानी इराक और वेनेजुएला को फिर से प्रतिबंधित करने की धमकी। इस दौरान, Ministry of Commerce and Industry ने कहा कि जनवरी‑जुलाई 2025 में इराकी पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का मूल्य $94 मिलियन था, और कुल आयात $205 मिलियन तक पहुँच गया, जो इराक के भारत के कुल एक्सपोर्स का 54 % था।

इंडिया‑इराक लेन‑देन की ठोस आँकड़े

इराकीय संसद की ऊर्जा आयोग के सदस्य Reza Sepahvand ने कहा कि भारत ने आधिकारिक रूप से इराकी तेल की खरीद का अनुरोध किया है, जबकि "स्नैपबैक" का खतरा स्पष्ट है। Sepahvand का अनुमान है कि वार्षिक आयात 10 मिलियन बैरल तक पहुँच सकता है, हालांकि सटीक मात्रा अभी तक खुलासा नहीं हुई।

  • जनवरी‑जुलाई 2025: इराकी कच्चे तेल की शिपमेंट $111 मिलियन की कीमत पर खरीदी गई।
  • कुल आयात (कच्चा + रिफ़ाइंड): $205 मिलियन।
  • इराक के भारत को निर्यात का 54 % हिस्सा।

अमेरिका‑भारत वार्तालाप: यूएनजीए में कूद‑कूद के कदम

सितंबर 2025 में न्यू यॉर्क में 80वें UN General AssemblyNew York के दौरान, भारतीय प्रतिनिधियों ने ट्रम्प प्रशासन को बताया कि यदि इराक और वेनेजुएला से तेल खरीदा जाए, तो रूस से आयात को 10‑20 % तक घटाया जा सकता है। उनका कहना था, "यदि हम तीनों को एक साथ बंद कर देंगे तो ग्लोबल प्राइस बुलबुले फूट सकते हैं, क्यूंकि 90 % हमारा तेल इम्पोर्ट पर निर्भर है।"

ब्लूमबर्ग के अनुसार, इस प्रस्ताव के पीछे दो‑तीन मुख्य कारण थे: पहला, भारत के रिफ़ाइनर अभी भी सस्ते रूसी तेल पर निर्भर हैं; दूसरा, इराक‑वेनेजुएला तेल अभी भी बहुत सस्ता है; तीसरा, अमेरिकी तालिके पर दोहरी दंड (sanctions) के कारण भारत को वैकल्पिक विकल्प चाहिए।

अमेरिकी दबाव और भारतीय प्रतिक्रिया

अमेरिकी दबाव और भारतीय प्रतिक्रिया

अमेरिकी एनर्जी सेक्रेटरी Chris Wright ने अप्रैल 2025 में कहा, "हम इराकी तेल निर्यात को रोक सकते हैं," जबकि ट्रेजरी सचिव ने फरवरी में लक्ष्य रखा कि इराकी निर्यात सिर्फ 100,000 बैरल/दिन तक सीमित रहे। राष्ट्रपति Donald Trump ने खुलेआम कहा कि भारत और चीन रूसी युद्ध वित्तपोषण के "मुख्य फंडर" हैं और उन्होंने भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ़ दुगुना कर दिया।

इन दबावों के बावजूद, रिफ़ाइनर अगले महीने (सितंबर 2025) रूसी तेल आयात को 150,000‑300,000 बैरल/दिन बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, जो अगस्त के आंकड़े से 10‑20 % अधिक है। यह संकेत देता है कि भारत अभी भी रूसी तेल को "बिल कम करने की कुंजी" मानता है, जबकि वैकल्पिक स्रोतों की खोज तेज़ी से चल रही है।

ज़ेलेंस्की की पुकार और वैश्विक नतीजे

युक्रेन के राष्ट्रपति Volodymyr Zelensky ने कई बार पश्चिम को थप्पड़ मारते हुए कहा कि जहाँ तक संभव हो, उन देशों पर सेकेंडरी सैंक्शन लगाएँ जो रूसी तेल खरीदते हैं। उनका तर्क है कि इन देशों को आर्थिक रूप से दबाव डालकर रूसी सेना को वित्तीय रूप से ख़त्म किया जा सकता है।

भारत की नई रणनीति, यानी इराक‑वेनेजुएला के साथ सौदा, इस बात को संकेत देती है कि वह पूरी तरह से पश्चिमी कैंसर‑जैसे दंडों के तहत नहीं झुकेगा। यह कदम, एक ओर, भारत को ऊर्जा विविधीकरण की ओर धकेलेगा, दूसरी ओर यू.एस. को नई कूटनीतिक चुनौती देगा – क्या वो इराक और वेनेजुएला के साथ भी सहानुभूति रखेगा?

आगे क्या होगा? अगले कदमों की लकीर

अगले छह महीनों में, दो मुख्य संकेतक देखे जाएंगे: पहला, यू.एस. के "स्नैपबैक" के बाद इराकीय तेल की शिपमेंट में वृद्धि या घटाव; दूसरा, रूसी तेल की कीमतों में उतार‑चढ़ाव, जो भारत के आयात खर्च पर सीधा असर डालेगा। अगर ट्रम्प प्रशासन ने इराक‑वेनेजुएला को छूट दी, तो भारत संभवतः रूसी आयात को 15 % तक घटा सकता है, जिससे वैश्विक तेल बाजार में नई स्थिरता आएगी।

वैश्विक स्तर पर, इस संवाद का प्रभाव यूरोपीय देशों, चीन और मध्य पूर्व के तेल निर्यातकों तक फेलाएगा। ऊर्जा सुरक्षा का यह नया समीकरण, अगले जैसा साल में भी, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और वाणिज्यिक समझौतों के बीच एक जटिल पैटर्न बनाता रहेगा।

Frequently Asked Questions

Frequently Asked Questions

भारत की इराकी तेल खरीद का मुख्य उद्देश्य क्या है?

भारत सस्ते इराकी तेल को वैकल्पिक स्रोत बनाकर रूसी तेल पर निर्भरता घटाना चाहता है, ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद अपनी ऊर्जा जरूरतें सुरक्षित रख सके। इससे आयात बिल पर दबाव कम होगा और कीमतों में अचानक उछाल से बचाव होगा।

"स्नैपबैक" तंत्र का भारत‑इराक व्यापार पर क्या असर पड़ेगा?

स्नैपबैक, यानी यू.एस. द्वारा इराक‑वेनेजुएला पर पुनः प्रतिबंध लगाना, भारत की आयात योजना को जोखिम में डाल सकता है। यदि लागू हुआ, तो भारत को तुरंत वैकल्पिक स्रोत ढूँढ़ने पड़ेंगे या अमेरिकी दंडों का सामना करना पड़ेगा।

क्या यू.एस. ने भारत को इराक व वेनेजुएला से तेल खरीदने की अनुमति दी है?

वर्तमान में ट्रम्प प्रशासन इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है; आधिकारिक मंज़ूरी अभी नहीं मिली है। वार्तालापों में यह कहा गया है कि यदि दोनो देशों से खरीद की अनुमति मिल जाए, तो भारत रूसी तेल को 10‑20 % तक घटा सकता है।

भारत‑रूस तेल संबंधी समझौते का भविष्य क्या है?

रूस से सस्ता तेल भारत की आयात लागत को कम करता है, इसलिए दोनों पक्षों का संबंध जारी रहेगा। लेकिन अमेरिकी दबाव, यूरोपीय प्रतिबंध और वैकल्पिक स्रोतों की उपलब्धता इस समझौते को पुन: संतुलित कर सकती है।

इंडिया‑इराक सौदा वैश्विक तेल बाजार को कैसे प्रभावित करेगा?

यदि भारत इराक से बड़े पैमाने पर तेल आयात करना शुरू करता है, तो मध्य‑पूर्वी सप्लाई में वृद्धि होगी, जिससे ओपेक‑संबंधित कीमतों में स्थिरता आ सकती है। दूसरी ओर, रूसी तेल की मांग घटने से यूरोप के वैकल्पिक स्रोतों पर दबाव कम होगा।

टिप्पणि:

  • chaitra makam

    chaitra makam

    अक्तूबर 5, 2025 AT 05:06

    भारत के ऊर्जा विविधीकरण की योजना समझने योग्य है। इराक से तेल लेना रूस पर निर्भरता घटाने में मदद करेगा। इससे आयात बिल पर दबाव थोड़ा कम हो सकता है। साथ ही बाजार में कीमतों की अस्थिरता से बचाव होगा। सरकार को इस दिशा में पारदर्शी कदम उठाते रहना चाहिए

  • Amit Agnihotri

    Amit Agnihotri

    अक्तूबर 5, 2025 AT 07:53

    इंडिया को तरह-तरह के दबावों से बचने चाहिए।

  • rama cs

    rama cs

    अक्तूबर 5, 2025 AT 10:40

    इराक‑वेनेजुएला के साथ ऊर्जा रणनीति को हम एक बहु‑आयामिक परिप्रेक्ष्य से देखना चाहिए। प्रथम, भू‑राजनीतिक जोखिम विश्लेषण यह दर्शाता है कि सॉर्स वैरायटी का अर्थ जोखिम का उत्थान नहीं, बल्कि वितरण है। द्वितीय, आर्थिक मॉडलिंग से यह स्पष्ट है कि तेल‑आपूर्ति श्रृंखला में विविधीकरण नकदी प्रवाह को स्थिर करेगी। तृतीय, ऊर्जा सुरक्षा के सिद्धांत के अनुरूप, विकेंद्रीकरण का तात्पर्य है कि एकल स्रोत पर निर्भरता को न्यूनतम किया जाए। इस प्रक्रिया में आयात‑बिल के स्केलेबिलिटी पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। चार्टरः डिफ़ॉल्ट रिफ़ाइनरी कैपेसिटी का 30 % भाग इराकी कच्चे तेल से पूरित होगा। पंचम, बाजार की लिक्विडिटी को बनाए रखने हेतु, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स के माध्यम से हेजिंग संभव है। षष्ठ, वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन विकास के साथ मिलाकर, इस योजना को एक समग्र जटिल प्रणाली माना जा सकता है। सप्तम्, अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमावली को ध्यान में रखते हुए, दो‑तरफ़ा संधियों की पुनः वार्ता आवश्यक होगी। अष्टम्, यू.एस. के स्नैपबैक तंत्र को टैक्टिकल‑डिप्लोमैटिक उपायों से संतुलित किया जाना चाहिए। नवम्, इस रणनीति के सामाजिक‑आर्थिक प्रभाव का मापन स्थानीय स्तर पर करना आवश्यक है। दशम्, दीर्घकालिक ऊर्जा नीति में इस परिप्रेक्ष्य को कंपनियों द्वारा अपनाने की प्रेरणा दी जानी चाहिए। ऐकराविंश, औद्योगिक लोड‑फैक्टर के अनुकूलन से अतिरिक्त लाभ मिल सकता है। इकिनाविंश, ऊर्जा सुरक्षा के बहु‑परिणामों को नीति‑निर्माताओं को समझाना चुनौतीपूर्ण परंतु आवश्यक है।

  • Monika Kühn

    Monika Kühn

    अक्तूबर 5, 2025 AT 13:26

    ओह, देखो तो सही, इराकी तेल की खरीदारी को नैतिक जिम्नास्टिक माना जा रहा है। किसने सोचा था कि तेल के बैरल में भी दार्शनिक गहराई होगी?

  • Surya Prakash

    Surya Prakash

    अक्तूबर 5, 2025 AT 16:13

    देश की ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देना नैतिक कर्तव्य है। लेकिन यह भी याद रखना जरूरी है कि प्रतिबंधों के पीछे मानवीय विचार होते हैं।

  • Sandeep KNS

    Sandeep KNS

    अक्तूबर 5, 2025 AT 19:00

    निःसंदेह, इराक‑वेनेजुएला के साथ व्यापार का औपचारिक प्रस्ताव, वैश्विक ऊर्जा मंच पर एक सूक्ष्म व्यंग्य की तरह कार्य करता है। यह दर्शाता है कि नीति निर्माताओं ने बौद्धिक तीक्ष्णता को व्यंग्य के साथ मिश्रित किया है।

  • Mayur Sutar

    Mayur Sutar

    अक्तूबर 5, 2025 AT 21:46

    ये कदम भारत की ऊर्जा जरूरतों को संतुलित करने की ओर एक सकारात्मक संकेत है। विविध स्रोतों से सामान मिलना आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देगा। आशा है कि आगे भी सहयोगी माहौल बना रहेगा।

  • Nancy Ortiz

    Nancy Ortiz

    अक्तूबर 6, 2025 AT 00:33

    वास्तव में, इराकी तेल की आयात रणनीति को हम एक जटिल जार्गन‑ड्रिवेन पॉलिसी फ्रेमवर्क के रूप में देख सकते हैं, जहाँ हर निर्णय में व्यंग्यात्मक बारीकी छुपी है।

  • Ashish Saroj( A.S )

    Ashish Saroj( A.S )

    अक्तूबर 6, 2025 AT 03:20

    आह! क्या बात है, इराक‑वेनेजुएला से तेल लेना अब "कट्टर विरोध" के रूप में पेश किया जा रहा है?; लेकिन वास्तव में यह सिर्फ एक रणनीतिक विकल्प है; और इस पर अधिकतर आवाज़ें केवल प्रतिपक्षी ही हैं; यह संपूर्ण परिप्रेक्ष्य को बदल देता है; इसलिए हमें इस पर पुनः विचार करना चाहिए;

  • Ayan Kumar

    Ayan Kumar

    अक्तूबर 6, 2025 AT 06:06

    भाई लोगों, इस धूमधाम वाले एनीमेशन में भारत ने अपने तेल के बाबू को अचानक नया बॉस बना लिया! अब यूएस को देखना पड़ेगा, हमारे पास भी अब दोहरे विकल्प हैं-ड्रामा नहीं, बल्कि असली पॉवर प्ले!

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