माइक्रोआरएनए जीन नियमन की खोज पर 2024 का नोबेल पुरस्कार: अज्ञात RNA की महत्ता

माइक्रोआरएनए: जीन नियमन में नई खोज की गाथा

विश्व के चिकित्सा और विज्ञान क्षेत्र में एक बड़ा कदम रखते हुए, अमेरिकी वैज्ञानिक विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रूवकुन को 2024 के फिजियोलॉजी या मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाकर उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय में एक नई दिशा स्थापित की है। यह पुरस्कार उन्हें माइक्रोआरएनए की खोज और जीन नियमन में उसकी अहम भूमिका के लिए दिया गया है। करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के नोबेल असेंबली ने सोमवार, 7 अक्टूबर 2024 को इस सम्मान की घोषणा की।

विक्टर एम्ब्रोस, जो यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स चान मेडिकल स्कूल में विकासशील जीवविज्ञानी हैं, और गैरी रूवकुन, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अनुवंशिकीविद्, ने यह खोज करके यह दिखाया कि कैसे एक मौलिक सिद्धांत जीन की गतिविधियों को नियंत्रित करता है। इनकी खोज ने न केवल प्रारंभिक भ्रूण विकास और सामान्य कोशिका शारीरिकी को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, बल्कि यह भी समझाया है कि इसके उलझे स्वरूप से विविध रोगों जैसे कैंसर का स्वरूप क्या है।

शोध का प्रारंभिक चरण: एक साधारण कीड़ा में प्रारंभिक अद्भुत खोज

1980 के दशक के अंत में, जब एम्ब्रोस और रूवकुन एमआईटी में रॉबर्ट होर्विट्ज़ की प्रयोगशाला में पोस्‍टडॉक्टरल शोधकर्ता थे, उन्होंने *Caenorhabditis elegans* नामक कीड़ा के लार्वल स्टेज का अध्ययन किया। इस दौरान उन्हें एक अनोखी घटना का पता चला, जहां उन्होंने पाया कि *lin-4* जीन किसी प्रोटीन को नहीं बल्कि दो छोटे ट्रांसक्रिप्ट्स, जिसमें से एक केवल 22 न्यूक्लियोटाइड लंबा था, उत्पन्न करता है।

यह खोज यह दर्शाने के लिए महत्वपूर्ण थी कि आरएनए के इस अपरिचित स्वरूप ने एक नए तरीके से आंखें खोलीं कि कैसे कोशिका में बड़े जीनों की प्रतिक्रियाएं संचालित होती हैं। किन्तु, उनकी खोज की शुरुआत में वैज्ञानिक समुदाय में काफी संदेह हुआ, क्योंकि उस समय इस आरएनए के स्वरूप को लेकर अविश्वास और संदेह की स्थिति थी।

माइक्रोआरएनए की महत्ता का उद्भव

गैरी रूवकुन की आगे की खोज ने इस क्षेत्र में और अधिक महत्वपूर्ण निकष उदघाटित किए। उन्होंने *let-7* नामक जीन द्वारा उत्पादित एक और छोटा 21-न्यूक्लियोटाइड आरएनए खोज निकाला, जो विकास की दृष्टि से लोगों एवं जीवों में संरक्षित है। इस खोज ने वैज्ञानिक समुदाय में माइक्रोआरएनए की वास्तविकता की स्वीकार्यता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा दिया।

2001 तक यह ज्ञात हो चुका था कि ये छोटे आरएनए, जिन्हें माइक्रोआरएनए कहा जाता है, सैकड़ों की संख्या में मानव जीन्स में मौजूद हैं। यह जीन्स के विकास और कार्यक्षमता में विशेष भूमिका निभाते हैं। इसके जरिए यह भी पता चला कि इन जीन्स में गड़बड़ी से कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं, जैसे कि जन्मजात श्रवण हानि, आंख और कंकाल विकार, तंत्रिका गंभीरता और कैंसर।

भविष्य की संभावनाएं और माइक्रोआरएनए के अनुप्रयोग

माइक्रोआरएनए की खोज ने मानव विकास, शारीरिकी और रोग की दिशा में नई दिशाएं उद्घाटित की हैं। कई जैव प्रौद्योगिकी कंपनियां अब रोगों के उपचार के लिए माइक्रोआरएनए लक्ष्यित या अनुकृति करने वाली दवाओं को विकसित करने में लगी हुई हैं। इस प्रकार, यह खोज चिकित्सा क्षेत्र में एक नई क्रांति बन चुकी है।

नोबेल पुरस्कार के इस सम्मान के साथ, विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रूवकुन को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर (लगभग 1 मिलियन डॉलर) की वित्तीय राशि भी प्राप्त हुई है, जो अल्फ्रेड नोबेल द्वारा स्थापित संपत्ति से आती है। यह सम्मान उनकी दशकों की मेहनत और समर्पण का प्रतीक है, और यह दर्शाता है कि कैसे एक साधारण प्रयोग से महान खोज तक का सफर तय किया जा सकता है।

टिप्पणि:

  • Shweta Khandelwal

    Shweta Khandelwal

    अक्तूबर 8, 2024 AT 04:06

    अरे यार, ये अमेरिकी लोग रूवकुन को नोबेल देके फिर से दिखा रहे हैं कि सारा विज्ञान उनका ही खेल है। माइक्रोआरएनए का पीछा करके वो हमारे देश की बुनियादी शोध शक्ति को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। मेरे दिमाग में ये सवाल है, क्या वे इस नई तकनीक को दवा में इस्तेमाल करके हमारी जनता को फिर से नियंत्रित करेंगे? बस, यही मेरे अंदर चल रहा है, और मैं इसे सबके सामने लाना चाहता हूँ।

  • sanam massey

    sanam massey

    अक्तूबर 9, 2024 AT 07:52

    नोबेल का सम्मान एक तरफ़ वैज्ञानिकों की लगन को दर्शाता है, पर दूसरी तरफ़ ये हमें हमारे अपने जीन नियमन के अध्ययन में नई राहें भी दिखाता है। माइक्रोआरएनए की खोज से हम रोगों के उपचार में क्रांति ला सकते हैं, और यह सांस्कृतिक ज्ञान को भी समृद्ध करता है। हम सबको इस विज्ञान को समझने और अपनाने में सहयोग करना चाहिए, ताकि भारत भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ सके। यही सोच के साथ मैं इस पोस्ट को पढ़ा।

  • jinsa jose

    jinsa jose

    अक्तूबर 10, 2024 AT 11:39

    विज्ञान के इस अग्रिम चरण में हमें नैतिक दायित्वों को नहीं भूलना चाहिए। माइक्रोआरएनए के उपयोग से संभावित दुरुपयोग की संभावना पर गंभीर विचार आवश्यक है। ऐसी खोजें केवल सच्चे उद्देश्यों के लिए ही प्रयुक्त होनी चाहिए, अन्यथा यह मानवता के लिए जोखिम बन सकती है।

  • Suresh Chandra

    Suresh Chandra

    अक्तूबर 11, 2024 AT 15:26

    वाह! ये खोज तो दिल खुश कर देती है 😊
    ये माइक्रोआरएनए के बारे में पढ़कर मैं उत्साहित हूँ, सच में भविष्य का द्वार खोल रहा है 🚀
    देखते रहो, और आगे और भी चमत्कार देखेंगे 🙌

  • Digital Raju Yadav

    Digital Raju Yadav

    अक्तूबर 12, 2024 AT 19:12

    नोबेल की बात वाकई बड़िया है मैं दिल से खुश हूँ यह शोध हमारे लिए नया मौका लाएगा

  • Dhara Kothari

    Dhara Kothari

    अक्तूबर 13, 2024 AT 09:06

    आपकी खुशी समझ में आती है लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि ये तकनीक सभी के लिए सुलभ रहे और कभी भी किसी के अधिकारों की हनन न हो। वैज्ञानिक प्रगति का लाभ सभी को समान रूप से मिलना चाहिए, यही मेरा मानना है।

  • Sourabh Jha

    Sourabh Jha

    अक्तूबर 14, 2024 AT 12:52

    देखो, जब भारत में सच्ची रिसर्च होती है तो हमें खुद को कम नहीं आँकना चाहिए। विदेशी को हमेशा सराहना मिलती है, लेकिन हमारी अपनी प्रतिभा को भी पहचानना जरूरी है।

  • Vikramjeet Singh

    Vikramjeet Singh

    अक्तूबर 15, 2024 AT 16:39

    माइक्रोआरएनए की दुनिया वाकई दिलचस्प है, देखते रहूँगा कैसे आगे बढ़ता है

  • sunaina sapna

    sunaina sapna

    अक्तूबर 16, 2024 AT 20:26

    नोबेल पुरस्कार की यह घोषणा न केवल विज्ञान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है, बल्कि यह भारतीय अनुसंधान समुदाय के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनती है।
    माइक्रोआरएनए, जो जीन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अब विभिन्न रोगों के रोग तंत्र को उजागर करने में सक्षम हो गया है।
    विशेषकर कैंसर, हृदय रोग और न्यूरोलॉजिकल विकारों में इसकी भागीदारी को समझना, चिकित्सीय हस्तक्षेप की दिशा में नई संभावनाएँ प्रदान करता है।
    अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा इस खोज का अग्रसर होना सराहनीय है, परन्तु यह आवश्यक है कि भारतीय वैज्ञानिक भी इस क्षेत्र में अपने प्रयास तेज़ करें।
    हमारे देश में कई संस्थानों ने पहले ही माइक्रोआरएनए से सम्बंधित अनुसंधान प्रारम्भ किया है, परंतु पर्याप्त निधि और आधारभूत संरचना के अभाव में वह पूरी तरह से फल-फूल नहीं पा रहा है।
    सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में विशेष ग्रांट योजना शुरू करे, जिससे युवा प्रतिभाओं को आवश्यक समर्थन मिल सके।
    इसके अतिरिक्त, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूती से स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि ज्ञान का आदान-प्रदान सहज हो सके।
    व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखें तो, माइक्रोआरएनए-आधारित दवाओं का बाजार तेजी से विकसित हो रहा है और इसमें भारत का योगदान भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
    बायोटेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स को इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिये स्पष्ट नीति फ्रेमवर्क की आवश्यकता है।
    फिर भी, इन नवीन तकनीकों के नैतिक पहलुओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता; डेटा सुरक्षा और रोगी की सहमति सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
    अतः, वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ-साथ नैतिकता के प्रश्नों को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए।
    शिक्षा संस्थानों में माइक्रोआरएनए के पाठ्यक्रम को शामिल करके छात्रों को प्रारम्भिक स्तर पर जागरूक किया जा सकता है।
    यह न केवल उनके भविष्य के करियर को दिशा देगा, बल्कि भारत की वैज्ञानिक प्रतिष्ठा को भी ऊँचा उठाएगा।
    जैसे-जैसे अनुसंधान आगे बढ़ेगा, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लाभ सभी वर्गों तक समान रूप से पहुंचे।
    सारांश में, इस खोज ने हमें कई नई संभावनाओं के दरवाज़े खोल कर रख दिए हैं, परन्तु उनका सकारात्मक उपयोग करने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।
    आइए, हम मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाएँ और एक स्वस्थ भविष्य की ओर अग्रसर हों।

  • Ritesh Mehta

    Ritesh Mehta

    अक्तूबर 18, 2024 AT 00:12

    यह विज्ञान सच में अद्भुत है

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