Rishabh Pant और Carlos Alcaraz: Sunil Gavaskar ने Wimbledon 2025 में की चौंकाने वाली तुलना

विंबलडन के सेंटर कोर्ट पर क्रिकेट की चर्चा: गावस्कर की पंत-अल्काराज़ तुलना
लंदन के घास के कोर्ट पर टेनिस की कड़ी रफ्तार, और बीच में क्रिकेट का सबसे दिलचस्प नाम. सुनील गावस्कर ने विंबलडन 2025 के सेंटर कोर्ट से भारतीय विकेटकीपर-बैटर Rishabh Pant (ऋषभ पंत) की तुलना स्पेनिश सनसनी कार्लोस अल्काराज़ से कर दी. वजह साफ है—दोनों खेल में अनपेक्षित चाल चलते हैं, और दर्शकों को हर पल सीट के किनारे पर बनाए रखते हैं.
गावस्कर ने स्टार स्पोर्ट्स से बात करते हुए अल्काराज़ की मूवमेंट, शॉट-मेकर के तौर पर उनके टूलकिट और कभी-कभी शोमैनशिप पर रोशनी डाली. उन्होंने कहा कि अल्काराज़ वह ड्रॉप शॉट भी आजमाते हैं जब सबको लगता है कि अब सीधा विनर मारो. और यही बात पंत के साथ भी दिखती है—वह वही खेलते हैं जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की होती. इस कॉम्बो का नतीजा अक्सर मनोरंजन और मैच की रफ्तार बदल देने वाली पारी में निकलता है.
भारतीय टीम इस वक्त इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज खेल रही है, ऐसे में विंबलडन का ब्रेक खिलाड़ियों और सपोर्ट स्टाफ के लिए ताज़ी हवा जैसा होता है. पंत खुद भी ऑल इंग्लैंड क्लब में नजर आए. उन्होंने पहले भी कहा है कि वह रोजर फेडरर को बचपन से आइडियल मानते आए हैं और मौजूदा दौर में अल्काराज़ और जानिक सिनर जैसे खिलाड़ियों का खेल उन्हें खींचता है. खेल से खेल का यह क्रॉसओवर आज की स्पोर्ट्स संस्कृति की सबसे खुशनुमा तस्वीर है.
अब बात मूल तुलना की. पंत के बारे में कोच हों या विपक्षी गेंदबाज—एक लाइन सबको पता है: पंत से उम्मीद करो, लेकिन जो सोचा है उससे उलटा भी हो सकता है. सिडनी 2021 की 97 रन वाली पारी ने ड्रा मैच को जीत के दायरे तक पहुंचा दिया था. ब्रिस्बेन के गाबा में 89* ने इतिहास पलट दिया. एजबेस्टन 2022 का शतक—खुला बैट, बोल्ड शॉट्स, और इंग्लिश कंडीशंस में पिच और गेंद दोनों को चुनौती. यही पंत का ब्रैंड है.
अल्काराज़ की दुनिया में भी स्क्रिप्ट कुछ वैसी ही है. यूएस ओपन 2022, विंबलडन 2023 और 2024, और फिर रोलां गैरों 2024 और 2025—इस स्पैन में उनका खेल बताता है कि वह बेसलाइन से भी खतरनाक हैं और नेट पर भी. फोरहैंड का पॉवर, ड्रॉप शॉट का टच, स्लाइस से रफ्तार टूटाना और फिर अचानक एंगल बदल देना—यह तेजी और बहादुरी उन्हें बाकी से अलग बनाती है.
गावस्कर की तुलना इसलिए वजनदार लगती है क्योंकि ये सिर्फ कौशल की बात नहीं, मानसिकता की बात है. पंत विकेट के पीछे हर ओवर में एवेंट बनाते हैं—रन-आउट का मौका, स्टंपिंग की बिजली, स्लेजिंग में हंसी-मजाक और कप्तान से छोटी-छोटी रणनीति. बैटिंग में उनका बैक-फुट पंच और रिवर्स स्वीप विपक्ष का प्लान बिगाड़ देता है. ठीक वैसे ही, अल्काराज़ 30-ऑल पर भी खतरा हैं और ब्रेक पॉइंट बचाने के वक्त भी नजर नहीं झपकाते. उनकी बॉडी लैंग्वेज विरोधी को याद दिलाती रहती है कि गलती तुम्हारी भी हो सकती है.
जो लोग कहेंगे कि अनपेक्षित खेल जोखिम भी लाता है, वे गलत नहीं होंगे. पंत का वही शॉट जो एक दिन मैच जिता देता है, अगली बार विकेट भी ले सकता है. कोचिंग मैनुअल से बाहर जाकर खेलने की कीमत है—कभी तालियां, कभी आलोचना. मगर यही तो आधुनिक खेल का सच है. दर्शक अब सिर्फ स्कोरकार्ड नहीं, एक अनुभव खरीदते हैं. पंत और अल्काराज़ उस अनुभव के सबसे भरोसेमंद सप्लायर हैं.
क्रॉस-स्पोर्ट रिस्पेक्ट, आंकड़ों से परे कहानी और आगे का रास्ता
क्रॉस-स्पोर्ट रिस्पेक्ट नया नहीं है, लेकिन इसका नजरिया बदल रहा है. पहले खिलाड़ी दूसरे खेलों में मेहमान बनकर जाते थे, अब वे एक-दूसरे को खेल की भाषा में पढ़ते हैं. गावस्कर जैसे दिग्गज जब टेनिस तकनीक, शॉट चयन और बॉडी बैलेंस की बात करते हैं, तो खेलों के बीच की दीवार कुछ और नीची हो जाती है. उसी दिन सेंटर कोर्ट पर जो भी बैठा था, उसे लगा होगा कि स्पोर्ट्स एक ही लेंस से भी देखे जा सकते हैं—रिस्क बनाम रिवार्ड, टेम्पो बनाम कंट्रोल.
पंत के करियर का बड़ा मोड़ सबको याद है—दिसंबर 2022 का कार हादसा. इसके बाद उनकी वापसी सबसे बड़ी हेडलाइन बनी. 2024 के आईपीएल में लौटकर उन्होंने ताल ठोंकी और फिर राष्ट्रीय टीम में सफेद जर्सी की जिम्मेदारी भी वापस ली. टेस्ट टीम में उप-कप्तानी की भूमिका बताती है कि ड्रेसिंग रूम में उनका वजन सिर्फ शॉट-मेकर भर का नहीं है. गेम-एवेयरनेस, स्पिनरों के साथ तालमेल, और रिव्यू सिस्टम में तेज नजर—ये सब कप्तान के लिए बोनस हैं.
जब बात इंग्लैंड की आती है, तो ड्यूक गेंद, बादल, और स्लिप कॉर्डन की गणना बढ़ जाती है. यहां पंत का काउंटर-अटैक विपक्ष की लाइन-लेंथ बिगाड़ता है. 20 ओवर में 60-70 का स्ट्राइक रेट टेस्ट में मामूली नहीं, दबाव की परिभाषा बदल देता है. बॉलर पीछे लेंथ खोजने लगते हैं और कप्तान फिल्ड हटाता-लगाता रहता है. यही दबाव इंजीनियरिंग अल्काराज़ भी करते हैं—रैली का टेम्पो बदलकर. कभी दो मील दूर लगता विनर वह दो शॉट में निकाल लेते हैं, कभी नेट पर आकर टच से पॉइंट चुरा लेते हैं.
अल्काराज़ के ग्रैंड स्लैम टैली ने उन्हें जल्दी ही पोस्टर-बॉय बना दिया है. बैक-टू-बैक बड़े खिताब, और घास से क्ले तक सहज ट्रांजिशन—यह बहुमुखी प्रतिभा टेनिस में दुर्लभ है. पंत के संदर्भ में यही बात विदेशी दौरों पर उनके रिज्यूमे से झलकती है. ऑस्ट्रेलिया की तेज उछाल, इंग्लैंड की सीम, दक्षिण अफ्रीका की शॉर्ट लेंथ—हर जगह उन्होंने तरीका बदला, लेकिन इरादा वही रखा: मैच की धारा मोड़नी है.
क्यों यह तुलना असरदार है? एक, दोनों एथलीट टेंपो-कंट्रोल करते हैं. दो, उनकी हिम्मत दर्शकों को बांधे रखती है. तीन, वे तकनीक से नहीं भागते, बल्कि तकनीक को चौंकाने के औजार की तरह इस्तेमाल करते हैं. चार, फिटनेस और कोर्ट/क्रीज कवरेज उनकी पहचान है—पंत की कुशनिंग डाइव्स और पावर-हिटिंग, अल्काराज़ का स्प्रिंट और रिकवरी. पांच, क्लच मोमेंट्स में वे शांति साधते हैं—यह क्वालिटी न तो सिखाई जाती है, न उधार मिलती है.
सोशल मीडिया की बहस में अक्सर पंत की तुलना एडम गिलक्रिस्ट से होती है—लेफ्ट-हैंड, आक्रामक बल्लेबाजी, विकेटकीपर-बैटर का रोल. गावस्कर ने फ्रेम थोड़ा बड़ा कर दिया—अब तुलना एक दूसरे खेल के नंबर-वन कंटेंडर से है. यह पंत की पोजिशनिंग भी बताती है: वह सिर्फ टीम India के लिए जरूरी नहीं, वह खेल-संस्कृति के लिए कहानी बन चुके हैं.
टेस्ट सीरीज के बीच विंबलडन जैसा माहौल टीम पर क्या असर डालता है? हल्कापन और फोकस, दोनों. ऑफ-डे में सेंटर कोर्ट पर बैठकर, आप लाइव देखते हो कि दबाव झेलना कैसा दिखता है. ब्रेक पॉइंट बचाते वक्त अल्काराज़ का चेहरा, या टाई-ब्रेक में उनका फुटवर्क—यह सब एथलीट की आंखों में बस जाता है. अगले दिन लॉर्ड्स या हेडिंग्ले में जब फील्ड सेट करनी हो, वह इमेज दिमाग में लौटती है. क्रॉस-पॉलीनेशन यही तो है.
तकनीकी नजर से भी तुलना दिलचस्प है. पंत का बैलेंस, खासकर ऑफ-स्टंप के बाहर कवर-ड्राइव और बैक-कट खेलते वक्त, अक्सर हाई-रिस्क दिखता है. पर उनका हेड-पोजिशन और हाथों की स्पीड रिस्क को कम करती है. अल्काराज़ के ड्रॉप शॉट्स में भी यही विज्ञान काम करता है—रैकेट-हेड स्पीड और आखिरी पल की भांप. दर्शक को सिर्फ नतीजा दिखता है, पर पीछे महीनों का काम छिपा रहता है.
चयन और रणनीति की भाषा में इसे लाइसेंस टू अटैक कहते हैं. पंत को टेस्ट में यह लाइसेंस मिला है क्योंकि उनका एक बड़ा शॉट विपक्ष के प्लान को तोड़ देता है. अल्काराज़ को भी कुछ हद तक वही छूट दिखती है—कोचिंग बॉक्स से इशारा नहीं, कोर्ट पर खुद फैसला. जीतते हैं तो जीनियस, चूकते हैं तो ओवर-अम्बिशस. लेकिन एलीट खेलों के इतिहास ने यही सिखाया है कि सीमाएं वही बढ़ाता है जो जोखिम लेना जानता है.
विंबलडन 2025 का सीन भी इसकी मिसाल है. सेंटर कोर्ट की खामोशी, हर पॉइंट के बीच हल्की सरसराहट, और किसी बड़े शॉट पर फूटता शोर—यह किसी बड़े टेस्ट मैदान की आखिरी घंटे की गूंज जैसा है. अल्काराज़ अपने टाइटल की रक्षा में उतरे हैं, उधर भारत इंग्लैंड में पुरानी गलतियों को सुधारने निकला है. पंत के बल्ले से एक 80-बॉल 90 अगर निकल जाए, तो सीरीज की धारा बदल सकती है. और अल्काराज़ के रैकेट से टाई-ब्रेक में दो ड्रॉप शॉट—मैच पलट सकता है.
आखिर में, गावस्कर की बात उतनी ही सीधी है जितनी असरदार: दोनों खिलाड़ियों को देखकर आप स्कोर नहीं, स्पोर्ट्स को महसूस करते हैं. यही वजह है कि पंत और अल्काराज़ सिर्फ रन और टाइटल नहीं जोड़ रहे, वे नई पीढ़ी को एक संदेश दे रहे हैं—खेलो, सोचो, और मौके पर भरोसा रखो. यह खेल का मूल है, और शायद यही वजह है कि विंबलडन की घास पर बैठकर भी गावस्कर को एजबेस्टन की याद आ जाती है.