सुप्रीम कोर्ट ने विवादित फिल्म 'हमारे बारह' पर रोक लगाई, फिल्म को लेकर उठे इस्लामिक भावनाओं के अपमान के आरोप

सुप्रीम कोर्ट ने विवादित फिल्म 'हमारे बारह' पर रोक लगाई

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म 'हमारे बारह' की रिलीज़ पर रोक लगा दी है। यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं ले लेता। फिल्म के रिलीज़ पर आरोप है कि यह इस्लामिक विश्वास और भारत में विवाहित मुस्लिम महिलाओं के प्रति अपमानजनक है।

मामला और पृष्ठभूमि

फिल्म 'हमारे बारह' को 14 जून को रिलीज़ किया जाना था। लेकिन इसके टीजर के रिलीज़ होने के बाद कई मुस्लिम संगठनों ने इसके खिलाफ विरोध किया। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की अवकाश बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए फिल्म के टीजर को देखा और उसे आपत्तिजनक पाया।

याचिकाकर्ता अजहर बाशा तंबोली ने अपनी याचिका में फिल्म 'हमारे बारह' के सर्टिफिकेशन को निरस्त करने और उसकी रिलीज़ को रोकने की मांग की थी। उन्होंने तर्क दिया कि फिल्म का ट्रेलर इस्लामिक विश्वास और विवाहित मुस्लिम महिलाओं का अपमान करता है।

सुनवाई और तर्क

तंबोली के अनुसार, फिल्म का ट्रेलर सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 और संबंधित नियमों और दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है। उनका कहना था कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) और 25 का भी उल्लंघन करता है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने पहले फिल्म की रिलीज़ पर 14 जून तक रोक लगाई थी और फिल्म की समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का आदेश दिया था।

बाद में, कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं के इस आश्वासन के आधार पर फिल्म की रिलीज़ की अनुमति दी थी कि वे कुछ डायलॉग्‍स को बिना प्रजुडिस के हटा देंगे।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म की स्क्रीनिंग पर तब तक के लिए रोक लगा दी है जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट इस याचिका का निपटारा नहीं कर लेता। इस निर्णय के बाद फिल्म के रिलीज़ पर पूर्णतः रोक लग गई है और समीक्षक समिति द्वारा फिल्म की पूर्ण समीक्षा की जाएगी।

फिल्म 'हमारे बारह' को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर फिल्म उद्योग में सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। देखना होगा कि बॉम्बे हाई कोर्ट अंतिम निर्णय में क्या फैसला लेता है और इस विवाद का क्या नतीजा निकलता है।

यह मामला दर्शाता है कि फिल्म और कला के माध्यम से समाज में अल्पसंख्यक समुदायों की भावनाओं का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। उम्मीद है कि इस मामले का समाधान यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में भी ऐसी घटनाएं नहीं होंगी जो किसी समुदाय की भावना को ठेस पहुंचाए

टिप्पणि:

  • Ritesh Mehta

    Ritesh Mehta

    जून 13, 2024 AT 20:38

    इंसाफ़ की बात है; धार्मिक संवेदनाएँ कभी हल्के में नहीं ली जानी चाहिए।

  • Dipankar Landage

    Dipankar Landage

    जून 14, 2024 AT 10:26

    क्या बात है, फिल्म की हर फ्रेम में ज्वाला जल रही है!
    समाज के दुराचार को उजागर करने की कोशिश है, पर हृदयें भी धड़क रही हैं।
    यदि सच्चाई को चुप किया जाए तो हम सबकी आत्मा पर जाल बन जाता है।

  • Vijay sahani

    Vijay sahani

    जून 15, 2024 AT 00:20

    चलो इस मुद्दे को एक नई रोशनी में देखें!
    फ़िल्म ने जो सवाल उठाए हैं, वे हमें अपने सामाजिक जिम्मेदारियों पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
    अगर हम मिलकर संवाद बनायें तो किसी भी विवाद का समाधान संभव है।

  • Pankaj Raut

    Pankaj Raut

    जून 15, 2024 AT 14:13

    यार मैं तो समझता हूँ कोर्ट की फर्स्ट स्टेप सही है लेकिन फिल्म बनाते वाले भी जिम्मेदार होना चाहिए, न कि सिर्फ शब्दों से खेलना।

  • Rajesh Winter

    Rajesh Winter

    जून 16, 2024 AT 04:06

    भाइयों, इस तरह के केस में दोनों तरफ़ की भावनाओं का सम्मान जरूरी है, इससे ही सामाजिक सहनशीलता बढ़ती है।

  • Archana Sharma

    Archana Sharma

    जून 16, 2024 AT 18:00

    सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सोचा हुआ था 😔, लेकिन आशा है आगे सबको समझदारी मिलेगी।

  • Vasumathi S

    Vasumathi S

    जून 26, 2024 AT 00:13

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'हमारे बारह' पर प्रतिबंधित आदेश का कानूनी परिप्रेक्ष्य अत्यन्त जटिल है।
    यह निर्णय मौलिक अधिकारों के संतुलन को लेकर संवैधानिक प्रवर्तन की आवश्यकता को उजागर करता है।
    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान का स्तंभ है, परन्तु यह अधिकार अनंत नहीं है।
    धार्मिक भावनाओं का सम्मान भी संविधान में अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है।
    इस द्वंद्व को सुलझाने हेतु न्यायालय को लाभकारी और अनुपातिक परीक्षण को अपनाना चाहिए।
    परीक्षण के अंतर्गत यह मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि क्या फ़िल्म की सामग्री सार्वजनिक शांति को हानि पहुँचाती है।
    यदि हानि सिद्ध नहीं होती, तो प्रतिबंध असंवैधानिक माना जा सकता है।
    दूसरी ओर, यदि सामग्री में स्पष्ट अपमान की संभावनाएँ मौजूद हैं, तो उचित रोकथाम का अधिकार लागू हो सकता है।
    मौजूदा मामले में अस्थायी प्रतिबंध का उपयोग न्यायिक सतर्कता का संकेत देता है।
    यह अस्थायी प्रकृति दर्शाती है कि हाई कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार किया जाना उचित है।
    कानूनी विशेषज्ञों ने भी इस बात पर प्रकाश डाला है कि न्यायिक प्रक्रिया में समयसापेक्षता का महत्व है।
    साथ ही, फ़िल्म निर्माताओं को अपने कार्य में सामाजिक संवेदनशीलता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    इस संदर्भ में स्वैच्छिक रूप से विवादास्पद दृश्यों को संशोधित करना एक प्रशंसनीय कदम हो सकता है।
    अंततः, न्यायपालिका को सामाजिक विविधता को समाहित करते हुए न्यायसंगत निष्कर्ष तक पहुँचना चाहिए।
    आशा है कि आगामी उच्च न्यायालय का निर्णय इस जटिल मुद्दे को संतुलित रूप से सुलझाएगा।

  • Anant Pratap Singh Chauhan

    Anant Pratap Singh Chauhan

    जून 17, 2024 AT 21:46

    फिल्म बनानी है तो सभी की भावनाओं का ध्यान रखो।

  • Shailesh Jha

    Shailesh Jha

    जून 18, 2024 AT 11:40

    मुझे लगता है कि इस केस में कानूनी फ्रेमवर्क को रीकॉल करना चाहिए, क्योंकि वर्तमान में क्लॉज 19(2) का अनुप्रयोग असंगत है और यह एक प्रीसीडेंट बन सकता है।

  • harsh srivastava

    harsh srivastava

    जून 19, 2024 AT 01:33

    सुप्रीम कोर्ट की इस फ़ैसले से हमें सीख लेनी चाहिए कि कला और संवेदना दोनों को एक साथ संभालना जरूरी है

  • Praveen Sharma

    Praveen Sharma

    जून 19, 2024 AT 15:26

    आइए इस विवाद को समझदारी से सुलझाएँ; दोनों पक्षों को सुनना और मिलजुल कर समाधान निकालना ही बेहतर होगा।

  • deepak pal

    deepak pal

    जून 20, 2024 AT 05:20

    देखा जाए तो ये हाइकोर्ट के फैसले का इंतजार है 🤷‍♂️

  • KRISHAN PAL YADAV

    KRISHAN PAL YADAV

    जून 20, 2024 AT 19:13

    फ़िल्म की कंटेंट एन्हांसमेंट पर फोकस करने के साथ ही, प्री-ग्राज़ित एसेसमेंट के लिये एक स्ट्रैटेजिक ब्रीफ़ बनाना ज़रूरी है, ताकि भविष्य में ऐसे मुद्दे कम हों।

  • ಹರೀಶ್ ಗೌಡ ಗುಬ್ಬಿ

    ಹರೀಶ್ ಗೌಡ ಗುಬ್ಬಿ

    जून 21, 2024 AT 09:06

    ये सब सिर्फ पब्लिक रिलेशन की गड़बड़ी है, असली मुद्दा तो फ़िल्म की क्वालिटी ही है।

  • chandu ravi

    chandu ravi

    जून 21, 2024 AT 23:00

    भारी दिल से देख रहा हूँ, कितना दर्द है इस सब में 😢

  • Neeraj Tewari

    Neeraj Tewari

    जून 22, 2024 AT 12:53

    जब तक समाज में विचारों का लोकतंत्र नहीं होता, तब तक ऐसी फ़िल्में बंद नहीं होंगी; लेकिन संतुलन बनाना जरूरी है।

  • Aman Jha

    Aman Jha

    जून 23, 2024 AT 02:46

    हम सबको मिलकर एक ऐसा संवाद स्थापित करना चाहिए जिसमें नज़रिए अलग हों लेकिन सम्मान समान रहे।

  • Mahima Rathi

    Mahima Rathi

    जून 23, 2024 AT 16:40

    फ़िल्म की वैधता पर बहस करना ही बोरिंग है 🙄

  • Jinky Gadores

    Jinky Gadores

    जून 24, 2024 AT 06:33

    यह मुद्दा तब तक रहेगा जब तक हम अपने भावनात्मक अंधेरे से बाहर नहीं निकलते

  • Vishal Raj

    Vishal Raj

    जून 24, 2024 AT 20:26

    सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई निरिक्षणयोग्य है, परन्तु हमें यह भी देखना चाहिए कि क्या यह न्यायसंगत कदम है।

एक टिप्पणी लिखें: