दुनिया भर में मनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, भारत ने इस बार एक ऐसा संदेश दिया है जो सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि शक्ति के केंद्र में महिलाओं को रखता है। नई दिल्ली के विग्नान भवन में 8 मार्च, 2025 को आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने की, जिसका विषय है — नारी शक्ति से विकसित भारत। यह सिर्फ एक भाषण नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत है।
महिलाओं को सोशल मीडिया का मंच देना: एक अनोखा रिवॉल्यूशन
यह साल अलग है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 मार्च को घोषणा की कि देश के कुछ असाधारण महिला नायिकाएं — एक गांव की शिक्षिका, एक छोटे शहर की टेक एंटरप्रेन्योर, एक आर्मी की जवान — उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स पर आकर अपनी कहानियां सीधे देश को सुनाएंगी। यह नहीं कि उन्हें बोलने का मौका दिया जा रहा है। बल्कि उनके मुंह से देश की सुनने की आवाज़ बन रही है। इसके लिए #SheBuildsBharat अभियान शुरू किया गया है, जिसमें डिजिटल एक्सहिबिशन, वीडियो आर्काइव और इंटरैक्टिव स्टोरीटेलिंग के जरिए महिलाओं के योगदान को दर्शाया जाएगा।
30 साल का बीजिंग डिक्लेरेशन: एक यादगार जश्न
इस बार का अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐतिहासिक वर्षगांठ के साथ आ रहा है — बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन का 30वां पूरा होना, जिसे 15 सितंबर, 1995 को 189 देशों ने अपनाया था। उस दिन दुनिया ने मान लिया था कि महिलाओं के अधिकार नागरिक अधिकार हैं। आज, जब दुनिया के एक चौथाई देशों में महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ प्रतिक्रिया देखी जा रही है, तो भारत का यह आयोजन एक अलग ही संदेश देता है। संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष के लिए "Accelerate Action" को विषय चुना है, लेकिन भारत ने अपना नारा बनाया है — विकसित भारत केवल नारी शक्ति से ही संभव है।
वित्तीय सशक्तिकरण, STEM और नेतृत्व: तीन खामोश क्रांतियां
कार्यक्रम में तीन ऐसे विषय हैं जिन पर देश ने अब तक बहुत कम चर्चा की है। पहला — वित्तीय समावेशन। एक बार जब महिलाओं के पास बैंक खाता हो, डिजिटल पेमेंट की जानकारी हो, और निवेश के लिए सुलभ ऋण मिल जाए, तो वे केवल परिवार की आर्थिक सुरक्षा नहीं, बल्कि समाज की आर्थिक गतिशीलता भी बढ़ाती हैं। दूसरा — STEM। भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं का हिस्सा अभी भी 28% से नीचे है। इस बार, आईआईटी के डॉक्टरेट होल्डर, एसएनएल के इंजीनियर और इसरो की वैज्ञानिक एक साथ बैठकर बताएंगी कि कैसे शिक्षा और मेंटरशिप ने उन्हें उनकी गलियारों में ले जाया। तीसरा — नेतृत्व। जब एक ग्राम पंचायत की सरपंच, एक डीजीपी और एक बैंक की सीईओ एक ही पैनल पर बैठें, तो यह बताता है कि नेतृत्व का रूप बदल रहा है।
निर्भया फंड और कानूनी कदम: क्या वास्तविकता है?
सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए ₹11,298 करोड़ का निर्भया फंड आवंटित किया है। इसके साथ फास्ट-ट्रैक कोर्ट, एकल विंडो सेल्फ-हेल्प सेंटर्स और ग्रामीण सुरक्षा योजनाएं भी शुरू की गईं। लेकिन अभी भी एक सवाल बाकी है — ये पैसे वास्तव में उन जगहों तक पहुंच पाते हैं जहां जरूरत है? राजस्थान के एक गांव में एक महिला सुरक्षा ग्रुप ने बताया कि उनके पास सिर्फ एक जीप है, और उसकी बैटरी चार्ज नहीं हो पाती। बेशक, नियम बन गए हैं, लेकिन क्या वे भूमि स्तर पर जीवित हैं? यही अगला चुनौतीपूर्ण सवाल है।
विश्व बैंक, यूनिसेफ और भारत: एक नया साझा दृष्टिकोण
इस बार कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भागीदारी अलग है। विश्व बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर एन्ना ब्जेर्डे ने घोषणा की कि विश्व बैंक भारत के साथ एक नया साझा निवेश योजना शुरू करने जा रहा है — जिसमें महिला उद्यमियों के लिए डिजिटल क्रेडिट स्कोरिंग और ब्लॉकचेन-आधारित लोन एक्सेस की व्यवस्था होगी। यूनिसेफ और यून वुमन भी शिक्षा और यौन स्वास्थ्य जागरूकता के लिए अपने डेटा और रिसोर्सेज शेयर कर रहे हैं। यह सिर्फ एक सम्मेलन नहीं, बल्कि एक नए नेटवर्क की शुरुआत है — जहां देश अकेला नहीं, बल्कि एक वैश्विक जुड़ाव का हिस्सा है।
अम्बेडकर का संदेश आज भी प्रासंगिक है
प्रसिद्ध संविधान निर्माता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने कहा था — "मैं एक समुदाय की प्रगति को उसमें महिलाओं की प्रगति से मापता हूं।" आज, जब हम देखते हैं कि एक गांव की महिला अपने घर के छत पर सोलर पैनल लगा रही है, या एक बहुत बड़ी कंपनी की सीईओ अपनी टीम को घर से काम करने का अधिकार दे रही है, तो यह संदेश अब और भी गहरा हो गया है। महिलाएं अब सिर्फ विकास के लाभ नहीं, बल्कि उसके निर्माता हैं।
अगला कदम: जब एक दिन का उत्सव एक साल की यात्रा बने
यह सब एक दिन का उत्सव नहीं होना चाहिए। अगले 12 महीनों में देश को यह देखना होगा कि क्या ये सारी बातें — डिजिटल लेंडिंग, स्टेम शिक्षा में लड़कियों का नाम, निर्भया फंड का उपयोग — वास्तव में रिपोर्ट में नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में दिखाई देते हैं। एक गांव की लड़की के लिए, यह दिन तब असली होगा जब उसकी बहन ने बैंक से लोन लिया, या उसकी माँ ने पंचायत की सभा में अपनी आवाज़ उठाई।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस बार का अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पिछले सालों से क्यों अलग है?
इस बार सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि असली शक्ति स्थानांतरण हो रहा है। प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर सामान्य महिलाओं को मंच दिया जा रहा है, जिससे उनकी कहानियां देश के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म पर पहुंच रही हैं। साथ ही, विश्व बैंक और यूनिसेफ के साथ नए वित्तीय और डिजिटल निवेश शुरू हो रहे हैं, जो सिर्फ अवधारणा नहीं, बल्कि व्यावहारिक समाधान हैं।
निर्भया फंड के ₹11,298 करोड़ का उपयोग कहां हो रहा है?
इस राशि का लगभग 40% फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स, 30% महिला सुरक्षा सेल्फ-हेल्प सेंटर्स और 20% ग्रामीण सुरक्षा योजनाओं में लग रहा है। बाकी 10% डिजिटल ऐप्स और एंटी-स्टैमिंग कैंपेन्स के लिए। लेकिन राज्यों में वितरण असमान है — दक्षिण भारत में इसका उपयोग अधिक पारदर्शी है, जबकि उत्तरी राज्यों में ब्यूरोक्रेसी अभी भी बाधा बनी हुई है।
भारत में महिलाएं STEM क्षेत्र में क्यों कम हैं?
महिलाओं का STEM में हिस्सा केवल 28% है, क्योंकि शिक्षा प्रणाली में लड़कियों को विज्ञान के लिए उत्साहित नहीं किया जाता, और मेंटरशिप का अभाव है। यहां के अध्ययनों के अनुसार, जिन लड़कियों को आईआईटी या एनआईटी में एक महिला शिक्षक मिल जाती है, उनमें से 67% इंजीनियरिंग में रहती हैं — जबकि बिना मेंटर के यह आंकड़ा 18% तक गिर जाता है।
क्या यह अभियान वास्तव में महिलाओं के जीवन बदल सकता है?
अगर यह सिर्फ एक दिन का उत्सव रह गया, तो नहीं। लेकिन अगर इसके बाद डिजिटल लेंडिंग, बैंकिंग और शिक्षा में नीतियां बदली जाएं, तो हां। एक अध्ययन के अनुसार, जब महिलाओं को छोटे ऋण और डिजिटल ट्रेनिंग मिलती है, तो उनके परिवार की आय 22% बढ़ जाती है और बच्चों की स्कूल उपस्थिति 35% तक बढ़ जाती है। यही असली बदलाव है।
क्या भारत वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के लक्ष्यों को पूरा कर रहा है?
कुछ क्षेत्रों में हां — जैसे बैंक खातों में महिलाओं का हिस्सा 84% हो गया है। लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व में महिलाओं का हिस्सा 14.6% है, जो वैश्विक औसत (27%) से कम है। और घरेलू हिंसा की रिपोर्ट्स अभी भी बढ़ रही हैं। तो आगे का रास्ता लंबा है।
क्या यह अभियान सिर्फ शहरी महिलाओं के लिए है?
�हीं। अभियान का मुख्य फोकस ग्रामीण महिलाओं पर है। लाखों गांवों में डिजिटल लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए उनकी कहानियां सुनाई जा रही हैं। गुजरात में एक गांव की महिला ने अपनी स्वयं सहायता समूह की कहानी शेयर की, जिसने उसके गांव में 12 नए व्यवसाय शुरू किए। यह शहर नहीं, गांव की आवाज़ है जो आज सुनी जा रही है।
rakesh meena
नवंबर 21, 2025 AT 06:08