बर्गर किंग ने मुकदमा हारा: पुणे के खानपान प्रतिष्ठान की जीत, अदालती फैसला

कानूनी लड़ाई के अनेकों पहलू और साढे तीन दशक पुरानी प्रतिष्ठान की जीत

बर्गर किंग कॉर्पोरेशन ने अपनी वैश्विक पहचान और स्वागत क्रियाओं की अनदेखी नहीं की होगी जब उसने 2011 में पूना स्थित खानपान प्रतिष्ठान के विरुद्ध ट्रेडमार्क उल्लंघन का मुकदमा दायर किया था। लेकिन आज, साढ़े तीन दशक के पुराने इस प्रतिष्ठान की स्थिति अमेरिकी फास्ट फूड दिग्गज के मुकाबले मजबूत हो गई है।

13 साल का यह कानूनी संघर्ष उस वक्त समाप्त हुआ, जब जिला न्यायाधीश सुनील वेदपठक ने बर्गर किंग कॉर्पोरेशन के दावे को खारिज करते हुए यह पाया कि पूना स्थित प्रतिष्ठान ने किसी भी प्रकार का ट्रेडमार्क उल्लंघन नहीं किया है। न्यायालय ने आदेश दिया कि यह स्थानीय प्रतिष्ठान अपना नाम बिना किसी बाधा के जारी रख सकता है।

स्थानीय प्रतिष्ठान का इतिहास और संघर्ष

अना‍हीता और शापुर ईरानी द्वारा संचालित यह प्रतिष्ठान 1991-92 से ही 'बर्गर किंग' नाम का उपयोग कर रहा है। यह समय अमेरिका आधारित बर्गर किंग कॉर्पोरेशन के भारतीय बाजार में प्रवेश करने से बहुत पहले का है, जो कि 2014 में हुआ था। अना‍हीता और शापुर इरानी ने अदालत में दावा किया कि अमेरिकी कंपनी का मुकदमा केवल उनके व्यापार को दबाव में डालने के इरादे से दायर किया गया था।

फिर भी, न्यायालय ने इस स्थानीय प्रतिष्ठान को मौद्रिक राहत देने से इंकार कर दिया। हालांकि, अदालती कार्यवाही में बर्गर किंग कॉर्पोरेशन की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा और साख को खतरा है, लेकिन न्यायालय ने इसे निराधार पाया।

लंबे समय़कान के बाद मुकदमे का अंत

2011 में दायर किए गए इस मुकदमे में बर्गर किंग कॉर्पोरेशन ने ₹20 लाख की हैंस प्रहरी और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी। पूना स्थित प्रतिष्ठान ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह मुकदमा खतरनाक इरादों से दायर किया गया है और इसके तहत उन्होंने भी ₹20 लाख के हरासमेंट और धमकियों के लिए हर्जाने की मांग की थी। परंतु, न्यायालय ने आवश्यकता पड़ने पर केवल मौखिक साक्ष्य की कमी के कारण दोनों ही पक्षों को मौद्रिक राहत से इनकार कर दिया।

फैसले के बाद, पूना के प्रतिष्ठान ने अपने नाम पर कायम रहते हुए अपने व्यापार को सफलतापूर्वक जारी रखने की खुशी जाहिर की। यह निर्णय न केवल उनके लिए, बल्कि उन सभी छोटे व्यापारियों के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता है जो बड़ी कंपनियों की ताकत के विरुद्ध अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं।

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